For how long will we keep our eyes shut on the demands of the farmers

Editorial: किसानों की मांगों पर आखिर कब तक आंखें बंद रखेंगे

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For how long will we keep our eyes shut on the demands of the farmers

For how long will we keep our eyes shut on the demands of the farmers: दिल्ली जाने को आतुर पंजाब के आंदोलनकारी किसानों, किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल, पंजाब एवं हरियाणा की सरकारों को जिस प्रकार सुप्रीम कोर्ट ने अलग-अलग तरीके से नसीहत दी है, वह पेचीदा होते जा रहे इस मामले को सुलझाने का एक प्रयास है। हालांकि इतना जल्दी यह मामला सुलझ जाएगा, इसकी उम्मीद बेमानी है। पहले ट्रैक्टर-ट्रॉली लेकर ही दिल्ली जाने पर अड़े किसानों ने अगर पैदल जाने देने की मांग की है तो वह भी अब स्वीकार नहीं की जा रही है।

वहीं अनशन कर रहे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल की तबीयत बिगड़ रही है, निश्चित रूप से सुप्रीम कोर्ट का पंजाब सरकार को यह निर्देश सर्वोच्च प्राथमिकता होना चाहिए कि डल्लेवाल को अनशन तोड़ने के लिए मनाएं लेकिन उनसे जबरदस्ती न हो, वहीं उनको पूरी मेडिकल सहायता भी मिले। जाहिर है, किसान संगठनों के लिए यह करो या मरो की स्थिति है, लेकिन सरकार एवं अदालत का यह दायित्व है कि वह यह सुनिश्चित करे कि कोई जनहानि न हो। यही वजह है कि हरियाणा सरकार को भी अदालत ने निर्देशित किया है कि शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे किसानों पर कोई पुलिस बल नहीं होना चाहिए। शंभु बार्डर पर किसानों के धरने-प्रदर्शन को एक साल का समय हो चुका है, इस आंदोलन की शुरुआत में हरियाणा पुलिस के साथ किसानों का जैसा टकराव हुआ था, वह भीषण था और उसी दौरान एक युवा किसान की मौत हो गई थी। ऐसे में यह जरूरी है कि किसी भी सूरत में किसानों या फिर पुलिस बल को क्षति न पहुंचे।

सुप्रीम कोर्ट ने किसानों से भी आग्रह किया है कि अपने आंदोलन को या तो कुछ समय के लिए स्थगित कर दें या फिर उसे कहीं ओर शिफ्ट करें। इसके अलावा किसानों से इसका भी आग्रह किया गया है कि शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन करें। प्रश्न यह है कि पंजाब के किसान अगर दिल्ली में जाकर प्रदर्शन करेंगे तो क्या होगा? किसानों का कहना है कि केंद्र सरकार दिल्ली में बैठी है, इसलिए उसे वहां जाकर उसे जगाना है। बेशक, एमएसपी समेत दूसरी मांगों का निर्धारण करने का दायित्व केंद्र सरकार का है, लेकिन केंद्र सरकार तो हर जगह है, फिर उसके लिए किसान दिल्ली ही क्यों जाना चाहते हैं।

यह आंदोलन अनेक परिस्थितियों से गुजरते हुए अब यहां तक पहुंचा है। इससे पहले तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों से जैसा आंदोलन चलाया था, उसमें केंद्र सरकार को झुकना पड़ा था। वह झुकना भी इसलिए हुआ क्योंकि आंदोलन की वजह से जनसामान्य का जीवन दूभर हो गया था। यानी शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन की बजाय अब जोर-जबर ही एकमात्र उपाय बच गया है। सुप्रीम कोर्ट, पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट लगातार यह कहते आ रहे हैं कि शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन किया जाए और हाईवे ब्लॉक नहीं किए जाएं तो यह और किस संदर्भ में कही गई बात है। किसान संगठनों को अगर अपनी मांगों को लेकर लडऩे का अधिकार है तो सडक़ से गुजरने वाले सामान्य लोगों को भी इसका अधिकार है। मांगें मनवाने के लिए आंदोलन की जरूरत है, लेकिन वह आंदोलन तभी सफल होगा, जब दिल्ली में केंद्र सरकार की नाक के नीचे प्रदर्शन होगा, यह बात कुछ समझ में नहीं आती।

दरअसल, इसमें कोई दो राय नहीं होनी चाहिए कि केंद्र सरकार को आंदोलनकारी किसानों की सुध लेनी चाहिए। केंद्र सरकार एवं हरियाणा में भाजपा सरकार के मंत्री एवं नेता इसका दावा करते आ रहे हैं कि किसानों से बात की जाएगी, लेकिन अभी तक केंद्र की ओर से इसकी कोशिश नहीं की गई है। जाहिर है, केंद्र सरकार इस समय शीत सत्र में व्यस्त है, लेकिन कुछ दिनों बाद सरकार बजट सत्र में व्यस्त होगी, ऐसे में किसानों की बात कब सुनी जाएगी। यह सिलसिला इसी प्रकार चलता रहेगा, लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं होगी।

इस मामले पर कुछ भी निर्णयात्मक नहीं कहा जा सकता कि एक सरकार को अपने राज्य में अशांति पैदा होने देने की स्थिति के बावजूद नरम रवैया अपनाना चाहिए या नहीं। जाहिर है, जिसकी जो जिम्मेदारी है, वह निभाएगा ही लेकिन बावजूद इसके होना यह भी चाहिए कि इस मामले पर राजनीति बंद हो। सत्ता पक्ष के लोगों की ओर से ऐसे बयान सामने आ रहे हैं जोकि विवादास्पद हैं। इस तरह की बातें करके इस मामले को बिगाड़ने की कोशिश नहीं होनी चाहिए। किसान भी इसी देश के निवासी हैं और उन्हें भी यहीं रहना है। हम उनकी राहों को कुछ समय के लिए रोक सकते हैं, लेकिन उनकी मांगों पर कब तक आंखें बंद करके रहेंगे। 

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